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अर्च॑न्ति॒ नारी॑र॒पसो॒ न वि॒ष्टिभि॑: समा॒नेन॒ योज॑ने॒ना प॑रा॒वत॑:। इषं॒ वह॑न्तीः सु॒कृते॑ सु॒दान॑वे॒ विश्वेदह॒ यज॑मानाय सुन्व॒ते ॥

English Transliteration

arcanti nārīr apaso na viṣṭibhiḥ samānena yojanenā parāvataḥ | iṣaṁ vahantīḥ sukṛte sudānave viśved aha yajamānāya sunvate ||

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Pad Path

अर्च॑न्ति। नारीः॑। अ॒पसः॑। न। वि॒ष्टिऽभिः॑। स॒मा॒नेन॑। योज॑नेन। आ। प॒रा॒ऽवतः॑। इष॒म्। वह॑न्तीः। सु॒ऽकृते॑। सु॒ऽदान॑वे। विश्वा॑। इत्। अह॑। यज॑मानाय। सु॒न्व॒ते ॥ १.९२.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:92» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे क्या करती हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - सूर्य की किरणें (विष्टिभिः) अपनी व्याप्तियों से (समानेन) समान (योजनेन) योग से अर्थात् सब पदार्थों में एक सी व्याप्त होकर (परावतः) दूरदेश से (न) जैसे (नारीः) पुरुषों के अनुकूल स्त्रियाँ (सुकृते) धर्मिष्ठ (सुदानवे) उत्तम दाता (सुन्वते) ओषधि आदि पदार्थों के रस निकालकर सेवनकर्त्ता (यजमानाय) और पुरुषार्थी पुरुष के लिये (विश्वा) समस्त उत्तम-उत्तम (अपसः) कर्मों और (इषम्) अन्नादि पदार्थों को (आवहन्तीः) अच्छे प्रकार प्राप्त करती हुई उनके (अह) दुःखों के विनाश से (अर्चन्ति) सत्कार करती हैं वैसे उषा भी है, उनका सेवन यथायोग्य सबको करना चाहिये ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे पतिव्रता स्त्रियाँ अपने-अपने पति का सेवन कर उनका सत्कार करती हैं, वैसे ही सूर्य की किरणें भूमि को प्राप्त हुई वहाँ से निवृत्त हो और अन्तरिक्ष में प्रकाश प्रकट कर समस्त वस्तुओं को पुष्ट करके सब प्राणियों को सुख देती हैं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ताः किं कुर्वन्तीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

या उषसो विष्टिभिः समानेन योजनेन परावतो देशान्नारीर्न पुरुषान् सुकृते सुदानवे सुन्वते यजमानाय विश्वान्यपस इषं चावहन्तीरह तद् दुःखविनाशनेनार्चन्तीदेव वर्त्तन्ते ता यथायोग्यं सर्वैः सेवनीयाः ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (अर्चन्ति) सत्कुर्वन्ति (नारीः) स्त्रीः (अपसः) उत्तमानि कर्माणि (न) इव (विष्टिभिः) व्याप्तिभिः (समानेन) तुल्येन (योजनेन) योगेन (आ) समन्तात् (परावतः) दूरदेशात् (इषम्) अन्नादिकम् (वहन्तीः) प्रापयन्तीः (सुकृते) धर्मात्मने (सुदानवे) सुष्ठुदानकरणशीलाय (विश्वा) विश्वानि सर्वाणि (इत्) एव (अह) दुःखविनिग्रहे (यजमानाय) पुरुषार्थिने (सुन्वते) ओषध्याद्यभिषवसेवनं कुर्वते ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा पतिव्रताः स्त्रियः स्वस्वपतीन् सैवित्वा सत्कुर्वन्ति तथैव सूर्यस्य किरणा भूमिं प्राप्य ततो निवृत्यान्तरिक्षे प्रकाशं जनयित्वा सर्वाणि वस्तूनि संपोष्य सर्वान् प्राणिनः सुखयन्ति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा पतिव्रता स्त्रिया आपापल्या पतीचा स्वीकार करून त्यांचा सत्कार करतात, तसेच सूर्याची किरणे भूमीवर पडतात तेथून परावर्तित होतात व अंतरिक्षात प्रकाश होतो व संपूर्ण वस्तूंना पुष्ट करून सर्व प्राण्यांना ती सुख देतात. ॥ ३ ॥